रे मन ! मान भी कितने लगाएगा मुखौटे जहाँ जाता है, पास होता है जिसके एक नया मुखौटा चढ़ा लेता है। छिः! किसी दिन मुखौटे ने विद्रोह कर दिया सोच क्या होगा? बहुत हो गया मुखौटे पर मुखौटा रखे अब मेरा कहना मान भी जा मेरे मन।
हिंदी समय में मनोज तिवारी की रचनाएँ